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शायरी... direct bollywood से!

મંગળવાર, 2 ડિસેમ્બર, 2008 કાપલીઓ , , , , 1 પ્રતિભાવો, આપનો પ્રતિભાવ જણાવવા અહિં Click કરો

कुछ समय से अच्छी फिल्मी शायरी ढूंढ रहा (keywords: Bollywood, Shayari, Sher-o-shayari, Hindi, Movie, Gazal - forum -SMS) था तो ईतनी मीली। मैं गानों की बात नहिं कर रहा, ये वो हैं जो किसी पात्रके संवादमें सुनी हैं या कहिं और।

आपका योगदान भी चाहिये। मैं ईसे मेरे Google Documentमें अपडेट करता रहुंगा। आप Roman लिपि में type कर सकतँ हैं, या प्रमुख TypePad का उपयोग करके हिन्दी(देवनागरी लिपि)में लिख सकतें है। अगर शायरी किसी और blog पर है जो कि roman लिपिमें है तो आप कृपया Write-K Indic Transliterator का उपयोग करके उसे देवनागरी लिपिमें ला सकते हैं। वरना बादमें मुझे वही करना पडेगा। :)








हम आह भी भरतें हैं तो हो जातें हैं बदनाम
वो कत्ल भी करतें हैं तो चर्चा नहिं होता
अज्ञात

काटे नहिं कटतें हैं रस्ते ईन्तझारके, नजरे जमा के बैठे हैं रस्ते पे यारके,
दिलने कहा जो देखे जलवे-हुस्न-ए-यारके, लाया है कौन ईन्हें फलकपे ऊतारके।
हम आपके हैं कौन

खुदीको कर बुँद ईतना के हर तकदीरसे पहेले,
खुदा बंदेसे खुद पूछे - 'बता, तेरी रझा क्या है'
अज्ञात

हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहाँ दम था ।
मेरी किश्ती भी वहाँ डूबी, जहाँ पानी कम था ।।
दिलवाले

इशरते-कतरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना
अज्ञात

फानूस बनके जिसकी हिफाझत हवा करे,
वो शमा क्या बूझे जिसे रौशन खुदा करे
अज्ञात

हुस्नको चांद जवानीको ग़ज़ल कहते है,
चाहनेवाले तुझे शोख-ए-ग़ज़ल कहते है।
उफ्फ़ ये संगेमर्मर सा शफ्फाक बदन,
देखनेवाले तुझे ताजमहल कहते है।
मन

मैं अकेला ही चला था जानिबे-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया।
मजरूह सुल्तानपुरी

जमाना तो बडे शौक से सुन रहा था
तुमहि सो गये दास्तां कहेते कहेते
अज्ञात

तेरे दिल में मेरी सांसों को पनाह मिल जाए,
तेरे इश्क़ में मेरी जान फ़ना हो जाए।
फ़ना

आँखें तो प्यार मे दिलकी जुबां होती है,
सच्ची चाहत तो सदा बेज़ुबां होती है,
प्यार मे दर्द भी मिल तो क्या गभराना,
सुना है दर्द से चाहत और जवां होती है।
फ़ना

फूल हूँ गुलाब का, चमेली का मत समझना,
आशिक़ हूँ आपका, अपनी सहेली का मत समझना।
फ़ना

दूर हमसे जा पओगे कैसे,
हमको भूल पाओगे कैसे?
हम वो खुशबू जो सांसों में उतार जय,
खुद अपनी सांसों को रोक पओगे कैसे?
फ़ना

बेखुदी की ज़िन्दगी हम जिया नही करते,
यूँ किसिका का जाम हम पिया नही करते।
उनसे केह दो मोहब्बत का इज़हार आकर खुद करें,
यूँ किसिका पीछा हम नही करते।
फ़ना

रोने दे तू आज हमको तू आंख सुजाने दे ,
बांहो मे लेले और खुद को भीग जाने दे,
है जो सीने मे कैद दरिया वो छूट जायेगा,
है इतना दर्द की तेरा दामन भीग जायेगा
फ़ना

अधूरी सांस थी धड़कन अधूरी थी अधूरें हम,
मगर अब चांद पूरा हैं फलक पे और अब पूरें हैं हम।
फ़ना

दिल के छालों को कोई शायरी कहे, तो दर्द नही होता,
तकलीफ तो तब होती है, जब लोग वाह-वाह करते हैं।
देवदास

अपने हिस्से की ज़िन्दगी तो हम कब की जी चुके,
अब तो सिर्फ धडकनों का लिहाज करते हैं,
क्या करें इस दुनिया वालों का,
जो आखरी धडकनो पे भी ऐतराज़ करते हैं।
देवदास

यू नज़र से नज़र की बात की,
की दिल चुरा ले गये,
हम तो समझे थे बूत,
आप तो धड़कन सुना गये।
देवदास

इतनी शिद्दत से मैने तुम्हे पाने की कोशिश की है,
कि हर ज़र्रे ने तुम्हे मुझसे मिलाने की साज़िश की है
ओम शांति ओम

हम जीते भी एक बार है, और मरते भी एक बार है,
और प्यार भी एक बार ही होता है
कुछ कुछ होता है

एक पाल में जो आकार गुजर जाए यह हवा का वो झोका है और कुछ नही,
प्यार कहती है दुनिया जिसे,एक रंगीन धोखा है और कुछ नही
दिलजले

आरजू झूठ है, आरजू का फरेब खाना नही,
खुश जो रहना हो ज़िन्दगी मे तुम्हें दिल कभी किसी से लगाना नही।
दिलजले

क्युं बनती हो तुम रेत के महल, जिसे खुद ही तोड़ डालोगी तुम,
आज कहती हो इस दिलजले से प्यार है तुम्हे, कल तो मेरा नाम तक भूल जाओगी तुम
दिलजले

तेरी बात ही सुनने आएं, दोस्त भी दिल दुखन आएं,
फूल खिलते हैं तो हम सोचते हैं, तेरे आने के ज़माने आए,
दिल धद्क्ता हैं सफर के समय,
काश फिर कोई बुलाने आए।
सांवरिया

नखुदा मानके बैठे है जिनकी कश्ती में, वो हमें मौजोंमें ले आये है डूबाने के लिये,
वो हवाओं की तरह रूख बदल लेते है, हम नसीबोन से लड़तें थे जिन्हे पाने के लिये
सांवरिया

फिर कोई जख्म लगा दो के में ज़िन्दा हूँ अभी,
मेरी पहचान मिटा दो के में ज़िन्दा हूँ अभी
ज़िन्दा

मेरे होते हुवे आप अश्क बहाओ तो बुरा लगता है,
मेरी आंखों को रुला दो के में ज़िन्दा हूँ अभी
ज़िन्दा

और कुछ तो तुम से हरगिज़ न दिया जायेगा,
मेरे मरने की दुआ दो के में ज़िन्दा हूँ अभी
ज़िन्दा




1 Response to "शायरी... direct bollywood से!"

Unknown કહ્યું...

सर ज़मीन-ए-हिन्दुस्तान! अस्सलाम आलयकुम. मेरा नाम बादशाह खान है. इश्क मेरा मज़हब, मोहब्बत मेरा इमान. मोहब्बत जिस के लिए शीरी और हेरा के नाम फूल की खुशबु बन गए. जिस के लिए फरहाद ने पहाडों का सीना चीर कर दूध की नेहेर बहा दी. जिस के लिए मजनू ने सहेराओं की खाक छानी और आज भी जिंदा है तारीख बन कर. उस्सी मोहब्बत के लिए काबुल का येह पठान, हिन्दुस्तान की सर-ज़मीन से मोहब्बत की खैर मांगने आया है.
आज़माइश कड़ी है, इम्तेहान मुश्किल है, लेकिन हौसला बुलंद है. जीत हमेशा मोहब्बत की हुई है, सदियों से येही होता आया है, येही होगा. रौशनी ग़र खुदा को हो मंज़ूर, आँधियों में चिराग जलते है. खुदा गवाह है!

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