અહિં આવ્યાને બે વરસ પૂરાં થવા આવ્યાં. આટલા સમયની ઉપ્લબ્ધિઓનું ગૌરવ તો છે જ પણ કદીક થોડું Homesickness જેવું લાગે છે ત્યારે મમળાવવા જેવા થોડાંક મને ગમતાં સદાબહાર હિન્દી ફિલ્મ ગીતો અને ગઝલો અહિ ભેગી કરવાનું મન થયું. લો ત્યારે... નામ, ગદર, દિલવાલે દુલ્હનીયા લે જાયેંગે, બૉર્ડર , રંગ દે બસંતી અને તારે ઝમીં પર નાં આ ગીતો...
चिट्ठी आई है, पंकज ऊधास, नाम, १९८६
चिट्ठी आई है आई है चिट्ठी आई है -२
चिट्ठी है वतन से चिट्ठी आयी है
बड़े दिनों के बाद, हम बेवतनों को याद -२
वतन की मिट्टी आई है, चिट्ठी आई है ...
ऊपर मेरा नाम लिखा हैं, अंदर ये पैगाम लिखा हैं -२
ओ परदेस को जाने वाले, लौट के फिर ना आने वाले
सात समुंदर पार गया तू, हमको ज़िंदा मार गया तू
खून के रिश्ते तोड़ गया तू, आँख में आँसू छोड़ गया तू
कम खाते हैं कम सोते हैं, बहुत ज़्यादा हम रोते हैं, चिट्ठी ...
सूनी हो गईं शहर की गलियाँ, कांटे बन गईं बाग की कलियाँ -२
कहते हैं सावन के झूले, भूल गया तू हम नहीं भूले
तेरे बिन जब आई दीवाली, दीप नहीं दिल जले हैं खाली
तेरे बिन जब आई होली, पिचकारी से छूटी गोली
पीपल सूना पनघट सूना घर शमशान का बना नमूना -२
फ़सल कटी आई बैसाखी, तेरा आना रह गया बाकी, चिट्ठी ...
पहले जब तू ख़त लिखता था कागज़ में चेहरा दिखता था -२
बंद हुआ ये मेल भी अब तो, खतम हुआ ये खेल भी अब तो
डोली में जब बैठी बहना, रस्ता देख रहे थे नैना -२
मैं तो बाप हूँ मेरा क्या है, तेरी माँ का हाल बुरा है
तेरी बीवी करती है सेवा, सूरत से लगती हैं बेवा
तूने पैसा बहुत कमाया, इस पैसे ने देश छुड़ाया
पंछी पिंजरा तोड़ के आजा, देश पराया छोड़ के आजा
आजा उमर बहुत है छोटी, अपने घर में भी हैं रोटी, चिट्ठी ...
udja kale kauwa (ghar aaja pardesi 1 & 2)
उडजा काले कांवा, उदित नारायण, गदर, २००१
उड़ जा काले कांवां तेरे मुँह विच खंड पावां
ले जा तू संदेसा मेरा मैं सदके जावां
बागों में फिर पड़ गए झूले पक गइयां मिठियां अ.म्बियां
ये छोटी सी ज़िंदगी ते रातां लम्बियां लम्बियां
ओ घर आजा परदेसी के तेरी मेरी इक जिंदड़ी
हो हो छम छम करता आया मौसम प्यार के गीतों का
रस्ते पे अँखियाँ रस्ता देखें बिछड़े मीतों का
सारी सारी रात जगाएं मुझको तेरी यादें
मेरे सारे गीत बने मेरे दिल की फ़रियादें
ओ घर आजा परदेसी ...
उड़ जा काले कांवां तेरे मुँह विच खंड पावां
ले जा तू संदेसा मेरा मैं सदके जावां
बागों में फिर पड़ गए झूले पक गइयां मिठियां अ.म्बियां
ये छोटी सी ज़िंदगी ते रातां लम्बियां लम्बियां
ओ घर आजा परदेसी के तेरी मेरी इक जिंदड़ी
हो हो कितनी दर्द भरी है तेरी मेरी प्रेम कहानी
सात समुंदर जितना अपनी आँखों में है पानी
मैं दिल से दिल मुझसे करता हो
मैं दिल से दिल मुझसे करता है जब तेरी बातें
सावन आने से पहले हो जाती हैं बरसातें
ओ घर आजा परदेसी ...
परवत कितने ऊँचे कितने गहरे होते हैं ओ
कुछ मत पूछो प्यार पे कितने पहरे होते हैं
इश्क़ में जाने क्या हो जाता है ये रब ही जाने
तोड़ के सारी दीवारें मिल जाते हैं दीवाने
ओ ले जा मुझे परदेसी के तेरी मेरी इक जिंदड़ी
हाँ ले जा मुझे परदेसी ...
उड़ जा काले कांवां तेरे मुँह विच खंड पावां
ले जा तू संदेसा मेरा मैं सदके जावां
बागों में फिर पड़ गए झूले पक गइयां मिठियां अ.म्बियां
ये छोटी सी ज़िंदगी ते रातां लम्बियां लम्बियां
ओ घर आजा परदेसी के तेरी मेरी इक जिंदड़ी
छम छम करता आया मौसम प्यार के गीतों का हो
रस्ते पे अँखियाँ रस्ता देखें बिछड़े मीतों का
आज मिलन की रात न छेड़ो बात जुदाई वाली
मैं चुप तू चुप प्यार सुने बस प्यार ही बोले खाली
ओ घर आजा परदेसी ...
ओ मितरा ओ यारा यारी तोड़के मत जाना हो
मैने जग छोड़ा तू मुझको छोड़के मत जाना
ऐसा हो नहीं सकता हो जाए तो मत घबराना
मैं दौड़ी आऊंगी तू बस इक आवाज़ लगाना
ओ घर आजा परदेसी ...
घर आजा परदेसी तेरा देस बुलाये रे, मनप्रित कौर, दिलवाले दुल्हनीया ले जायंगे, १९९५
हो कोयल कूके हूक उठाए यादों की बंदूक चलाए
बागों में झूलों के मौसम वापस आए रे
घर आजा परदेसी तेरा देस बुलाए रे
घर आजा परदेसी ...
इस गांव की अनपढ़ मिट्टी पढ़ नहीं सकती तेरी चिट्ठी
ये मिट्टी तू आकर चूमे तो इस धरती का दिल झूमे
माना तेरे हैं कुछ सपने पर हम तो हैं तेरे अपने
भूलने वाले हमको तेरी याद सताए रे
घर आजा परदेसी ...
पनघट पे आई मुटियारें छम छम पायल की झनकारें
खेतों में लहराई सरसों कल परसों में बीते बरसों
आज ही आजा गाता हँसता तेरा रस्ता देखे रस्ता
अरे छुक छुक गाड़ी की सीटी आवाज़ लगाए रे
घर आजा परदेसी ...
हाथों में पूजा की थाली आई रात सुहागों वाली
ओ चाँद को देखूं हाथ मैं जोड़ूं करवा चौथ का व्रत मैं तोड़ूं
तेरे हाथ से पीकर पानी दासी से बन जाऊं रानी
आज की रात जो मांगे कोई वो पा जाए रे
घर आजा परदेसी ...
ओ मन मितरा ओ मन मीता वे तेनूं रब दे हवाले कीता
दुनिया के दस्तूर हैं कैसे पागल दिल मजबूर है कैसे
अब क्या सुनना अब क्या कहना तेरे मेरे बीच ये रैना
खत्म हुई ये आँख मिचौली कल जाएगी मेरी डोली
मेरी डोली मेरी अर्थी न बन जाए रे
घर आजा परदेसी ...
ओ माही वे ओ चनवे वे जिंदवा ओ सजना
Ke Ghar Kab Aaoge
संदेशे आतें हैं , सोनु निगम, रूपकुमार राठोड, बोर्डेर, १९९७
संदेसे आते हैं हमें तड़पाते हैं
जो चिट्ठी आती है वो पूछे जाती है
कि घर कब आओगे लिखो कब आओगे
कि तुम बिन ये घर सूना सूना है
किसी दिलवाली ने किसी मतवाली ने
हमें खत लिखा है ये हमसे पूछा है
किसी की साँसों ने किसी की धड़कन ने
किसी की चूड़ी ने किसी के कंगन ने
किसी के कजरे ने किसी के गजरे ने
महकती सुबहों ने मचलती शामों ने
अकेली रातों में अधूरी बातों ने
तरसती बाहों ने
और पूछा है तरसी निगाहों ने
कि घर कब आओगे लिखो कब आओगे
कि तुम बिन ये दिल सूना सूना है
संदेसे आते हैं ...
मुहब्बत वालों ने हमारे यारों ने
हमें ये लिखा है कि हमसे पूछा है
हमारे गांवों ने आम की छांवों ने
पुराने पीपल ने बरसते बादल ने
खेत खलियानों ने हरे मैदानों ने
बसन्ती मेलों ने झूमती बेलों ने
लचकते झूलों ने दहकते फूलों ने
चटकती कलियों ने
और पूछा है गांव की गलियों ने
कि घर कब आओगे लिखो कब आओगे
कि तुम बिन गांव सूना सूना है
संदेसे आते हैं ...
कभी एक ममता की प्यार की गंगा की
जो चिट्ठी आती है साथ वो लाती है
मेरे दिन बचपन के खेल वो आंगन के
वो साया आंचल का वो टीका काजल का वो
लोरी रातों में वो नरमी हाथों में
वो चाहत आँखों में वे चिंता बातों में
बिगड़ना ऊपर से मुहब्बत अंदर से
करे वो देवी माँ
यही हर खेत में पूछे मेरी माँ
कि घर कब आओगे
कि तुम बिन आंगन सूना सूना है
ऐ गुजरने वाली हवा बता
मेरा इतना काम करेगी क्या
मेरे गांव जा मेरे दोस्तों को सलाम दे
मेरे गांव में है जो वो गली
जहां रहती है मेरी दिलरुबा
उसे मेरे प्यार का जाम दे
वहां थोड़ी दूर है घर मेरा
मेरे घर में है मेरी बूढ़ी माँ
मेरी माँ के पैरों को छू उसे उसके बेटे का नाम दे
ऐ गुजरने वाली हवा ज़रा
मेरे दोस्तों मेरी दिलरुबा मेरी माँ को मेरा पयाम दे
उन्हें जा के तू ये पयाम दे
मैं वापस आऊंगा फिर अपने गांव में
उसी की छांव में कि माँ के आँचल से
गांव की पीपल से किसी के काजल से
किया जो वादा है वो निभाऊंगा
मैं एक दिन आऊंगा
Rang De Basanti-Lukka Chuppi with eng subs
लुक्का-छूप्पी बहोत हूई, लता मंगेशकर, रंग दे बसंती, २००६
लता:
लुका-छुपी बहुत हुई
सामने आजा ना
कहान-कहान ढ़ूँडा तुझे
थाके है अब तेरी माँ
आजा सांझ हुई मुझे तेरी फिकर
धून्धला गई देख मेरी नज़र
आजा ना
रहमान:
क्या बताऊँ माँ कहान हूँ मैं
यहाँ उड़ने को मेरे खुला आस्मां है
तेरे किस्सों जैसा भोला
सलोना जहान है यहाँ सपनो वाला
मेरी पतंग हो बेफिकर उड़ रही है माँ
डोर कोई लूटे नही बीच से काटे ना
लता:
तेरी राह तके अखियाँ
जाने कैसा-कैसा होए जिया
धीरे-धीरे आकर उतरे अँधेरा
तेरा दीप कहाँ
ढल के सूरज करे इशारा
चन्दा तू है कहाँ
मेरे चन्दा तू है कहाँ
रहमान:
कैसे तुझको दिखाऊन यहाँ है क्या
मैंने झरने से पानी माँ तोड़ के पीया है
गुच्छा-गुच्छा कई ख्वाबों का
उछल के छुआ है
ाया लिए भली धूप यहाँ है
नया-नया सा है रूप यहाँ
यहाँ सब कुछ है माँ फिर भी
लगे बिन तेरे मुझको अकेला
तूझे सब है पता, है ना मां?, शंकर महादेवन, तारे जमीं पर, २००७
मैं कभी बतलाता नहीं पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ
यूँ तो मैं दिखलाता नहीं, तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ
तुझे सब है पता, है ना माँ......मेरी माँ
भीड़ में यूँ ना छोड़ो मुझे, घर लौट के भी आ ना पाऊँ माँ
भेज ना इतना दूर मुझको तू, याद भी तुझको आ ना पाऊँ माँ
क्या इतना बुरा हूँ मैं माँ, क्या इतना बुरा.............मेरी माँ
जब भी कभी पापा मुझे जोर ज़ोर से झूला झुलाते हैं माँ
मेरी नज़र ढूँढे तुझे, सोचूँ यही तू आके थामेगी माँ
तुमसे मैं ये कहता नहीं, पर मैं सहम जाता हूँ माँ
चेहरे पे आने देता नहीं, दिल ही दिल में घबराता हूँ माँ
तुझे सब है पता, है ना माँ......मेरी माँ
मैं कभी बतलाता नहीं, पर अंधेरे से डरता हूँ मैं माँ
यूं तो मैं दिखलाता नहीं, तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ
तुझे सब है पता, है ना माँ......मेरी माँ
इसी गीत का एक टुकड़ा गीत के थोड़ी देर बाद आता है, (जो सामान्यतः इंटरनेट या चिट्ठों पर नहीं दिखाई देता) बच्चे की संवेदनहीन त्रासद स्थिति तक पहुँचने की कथा कहता है
आँखें भी अब तो गुमसुम हुईं
खामोश हो गई है ये जुबां
दर्द भी अब तो होता नहीं
एहसास कोई बाकी हैं कहाँ
तुझे सब है पता, है ना माँ
Lyrics Courtesy Ek Shaam Mere Naam
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